डॉ. अशोक तिवारी
Ph.D. in Energy management
महान इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था – विश्व के इतिहास
में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह
भारत का इतिहास ही है.
भारतीय इतिहास का प्रारंभ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे
हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है. बताया जाता है कि
वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय
सभ्यता विद्यमान थी. मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के
नगर थे.
पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि
बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली
बिहार तक, पूरा पाकिस्तान व अफगानिस्तान तथा ईरान का हिस्सा तक पाया जाता
है. अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है.
इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई
जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है. इतिहासकारों का दावा है कि
यह लिपि अभी तक अज्ञात है और पढ़ी नहीं जा सकी. जबकि सिन्धु घाटी की लिपि
से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे – इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई,
आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं.
आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है.
सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने
के सार्थक प्रयास किये गए. भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (Indian Council
of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर कम्युनिस्टों का
कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं
चलायी.
आखिर ऐसा क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और कम्युनिस्ट
इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए?
अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे –
https://makingindiaonline.in/online-news-in-hindi/2016/05/31/history-sindhu-ghati-lipi-communist-historians